नारी के मन की मौन वेदना
कोई नहीं समझ पाता है,
नारी कमजोर नहीं, शक्ति है उसकी अपनी परिभाषा है,
मुख कभी मलिन, कभी कांतिमय चेहरे पर उभरती, आशा निराशा है,
वो एक अबूझ पहेली है जिसे जानने की सबको जिज्ञासा है,
घऱ के हर कोने को
मंदिर क़ा रूप देती है,
उसके दिल के कोने में भी
एक सुप्त अभिलाषा है,
नारी को निरिह दृष्टि से ना देखो
उसके हर रूप की एक गाथा है !

✍ शालिनी गोस्वामी
अंब ज़िला ऊना